रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर ठग एआई की मदद से अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। आने वाले समय में ये एक बड़ी चुनौती बन सकता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के प्रबंध निदेशक जेरेमी जुर्गेंस के मुताबिक एआई के चलते साइबर अपराध का खतरा पहले की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ चुका है। वहीं वर्तमान में बढ़ते भू-राजनीतिक खतरे इन चुनौतियों को और बढ़ा देते हैं। सर्वे में तीन में से एक संस्था के सीईओ ने माना कि आज के समय में साइबर जासूसी और एआई की मदद से बौद्धिक संपदा की चोरी बड़े खतरे के तौर पर उभरे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में साइबर कौशल की कमी है। 2024 में लगभग साइबर अपराध को रोकने में सक्षम और प्रशिक्षित लोगों की कमी 8 फीसदी तक महसूस की गई। आज लगभग दो-तिहाई संगठन आवश्यक सुरक्षा विशेषज्ञों के बिना काम कर रहे हैं।

एक्सेंचर सिक्योरिटी के ग्लोबल लीड पाओलो डाल सिन के मुताबिक “साइबर सुरक्षा अब वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करती है। आज संस्थाओं को साइबर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बड़े पैमाने पर निवेश करने की जरूरत है।

पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं, हमें इस बात को समझना होगा कि आज युद्ध सिर्फ सीमाओं पर नहीं लड़ा जा रहा है। भारत ने पिछले कुछ सालों में अच्छी आर्थिक प्रगति की है। देश के आर्थिक विकास को बाधित करने के लिए कई दुश्मन देश और एजेंसियां कई प्रयास कर रहे हैं। इनमें साइबर हमला एक बड़ा हथियार बन कर उभरा है। देश के कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील संस्थानों पर लगातार साइबर हमले किए जा रहे हैं। एआई के आने के बाद ये खतरा और बढ़ चुका है। चीन, पाकिस्तान और कुछ अन्य देशों में साइबर आर्मी तैयार की गई है जिनका काम ही है अपने प्रतिद्वंद्वी या दुश्मन देश की आर्थिक और सामरिक संस्थाओं को निशाना बनाना। आज भारत को साइबर सुरक्षा को लेकर बड़े पैमाने पर तैयारी करने की जरूरत है। बदले भू राजनैतिक और अस्थिरता के माहौल में देश को साइबर क्षेत्र में सुरक्षा को पुख्ता बनाना बेहद जरूरी है। इजराइल और हमास का युद्ध हो या रशिया और यूक्रेन का, इन युद्धों ने साबित कर दिया कि दुनिया के किसी भी हिस्से में इस बार युद्ध होगा तो उसमें साइबर हमलावरों की अहम भूमिका होगी। वहीं अगर किसी देश की साइबर सुरक्षा की तैयारी कमजोर होगी तो उसके लिए युद्ध में लम्बे समय तक टिक रहना आसान नहीं होगा।

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि आधुनिक तकनीक के तौर पर आज एआई एक बड़ी संभावना के तौर पर उभरा है। आज एआई के जरिए कई काम बेहद आसान हो गए हैं। लेकिन एआई के दुरुपयोग का खतरा भी बढ़ा है। आज साइबर अपराधी भी एआई को एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में सामने आया कि साइबर अपराधी फ्रॉड जीपीटी टूल का इस्तेमाल कर साइबर ठगी के नए तरीके तैयार कर रहे हैं। हमें इस बात को समझना होगा कि एआई के इस्तेमाल के चलते आने वाले समय में साइबर अपराध के मामलों को सुलझाना बेहद कठिन हो जाएगा। किसी मामले की जांच के दौरान पुलिस अंत में एआई टूल तक पहुंच पाएगी। साइबर अपराधी तक पहुंचना बेहद कठिन हो सकता है। ऐसे में हमें अभी से सावधान होना पड़ेगा। चीन और यूरोपियन यूनियन में इस खतरे को देखते हुए एआई से होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के लिए अलग और स्पष्ट कानून बनाए गए हैं। एआई के इस्तेमाल को लेकर नए प्रावधान बनाए जा रहे हैं। भारत में अभी एआई के इस्तेमाल या इससे होने वाले अपराधों पर लगाम लगाने के लिए स्पष्ट कानून नहीं है। सरकार को इसे ध्यान में रखते हुए एक सशक्त कानून बनाने की जरूरत है।

पिछले कुछ सालों में देश में साइबर अपराधों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने कई तरह के प्रयास किए हैं। साइबर एक्स्पर्ट रक्षित टंडन कहते हैं कि, आज देश भर में बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों को आईआईटी और अन्य प्रशिक्षित तकनीकी संस्थानों की मदद से साइबर अपराधों पर लगाम लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। वहीं सरकार ने ऑनलाइन कम्पलेंट प्लेटफॉर्म शुरू किया गया है ताकि लोग अपने साथ होने वाले अपराधों को आसानी से रजिस्टर करा सकें। साइबर दोस्त के जरिए लोगों को साइबर अपराधों के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है। आज एआई साइबर अपराध के लिहाज से एक बड़े खतरे के तौर उभरा है। एआई के चलते डीप फेक और वॉइस क्लोनिंग जैसे साइबर अपराध हो रहे हैं। इस पर लगाम लगाने के लिए आम लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। सावधानी बरत कर ही इस तरह के अपराधों पर लगाम लग सकती है।

गृह मंत्रालय ने देश में सभी प्रकार के साइबर अपराधों से समन्वित और व्यापक तरीके से निपटने के लिए ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (I4C) की स्थापना की है। I4C के एक भाग के रूप में ‘राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल’ ( https://cybercrime.gov.in ) लॉन्च किया गया है ताकि जनता सभी प्रकार के साइबर अपराधों से संबंधित घटनाओं की रिपोर्ट कर सके। इनमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस पोर्टल पर रिपोर्ट की गई साइबर अपराध की घटनाएं, एफआईआर के तौर पर दर्ज कर कार्रवाई के लिए भेजी जाती हैं। वित्तीय धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्टिंग और धोखेबाजों द्वारा धन की हेराफेरी को रोकने के लिए I4C के तहत ‘नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली’ वर्ष 2021 में शुरू की गई है। अब तक 9.94 लाख से अधिक शिकायतों में 3431 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय राशि बचाई गई है। साइबर अपराधों के पीड़ितों की सहायता के लिए सरकार ने एक टोल-फ्री राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर (1930) शुरू किया है।

I4C ने भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के 7,330 अधिकारियों को साइबर स्वच्छता प्रशिक्षण दिया है। 15.11.2024 तक, पुलिस अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट किए गए 6.69 लाख से अधिक सिम कार्ड और 1,32,000 IMEI को भारत सरकार द्वारा ब्लॉक किया गया है। साइबर अपराध जांच, फोरेंसिक आदि के महत्वपूर्ण पहलुओं पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम के माध्यम से पुलिस और न्यायिक अधिकारियों की ट्रेनिंग के लिए I4C के तहत बड़े पैमाने पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम (एमओओसी) प्लेटफॉर्म, जिसका नाम ‘साइट्रेन’ पोर्टल है, विकसित किया गया है।

भारत और अमेरिका ने साइबर अपराध जांच में सहयोग बढ़ाने के लिए वाशिंगटन डीसी में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। भारत और अमेरिका ने आपराधिक जांच में साइबर खतरे की खुफिया जानकारी और डिजिटल फोरेंसिक पर सहयोग और सूचना साझा करने को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है। इस समझौते के जरिए दोनों देशों की संबंधित एजेंसियों को आपराधिक जांच में साइबर खतरे की खुफिया जानकारी और डिजिटल फोरेंसिक के उपयोग के संबंध में सहयोग और प्रशिक्षण के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी। साइबर अपराध का भारत और अमेरिका के सामने आने वाली आम सुरक्षा चुनौतियों से गहरा संबंध है, जैसे आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद, आतंकी वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, संगठित अपराध, मानव तस्करी, अवैध प्रवास, धनशोधन और परिवहन सुरक्षा। साइबर अपराध जांच पर समझौता ज्ञापन हमारी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने में सक्षम बनाएगा।