प्रयागराज महाकुम्भ में कुल 14 प्रमुख स्नान तिथियां हैं, जिनमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाकुम्भ में स्नान करने से मनुष्य को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के पाप दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

‼️‼️महाकुम्भ 2025 स्नान की तिथियाँ‼️‼️

✅️ महाकुम्भ प्रथम स्नान तिथि:

पौष शुक्ल एकादशी 10 जनवरी 2025 शुक्रवार

✅️महाकुम्भ द्वितीया स्नान तिथि :

पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 सोमवार

✅️महाकुम्भ चतुर्थ स्नान तिथि :

माघ कृष्ण एकादशी 25 जनवरी, 2025, शनिवार ।

✅️महाकुम्भ पंचम स्नान तिथि :

माघ कृष्ण त्रयोदशी 27 जनवरी, 2025 , सोमवार।

✅️महाकुम्भ अष्टम स्नान तिथि :

माघ शुक्ल सप्तमी-4 फरवरी, 2025 ई., मंगलवार ।

✅️महाकुम्भ नवम स्नान तिथि :

माघ शुक्ल अष्टमी -5 फरवरी, 2025 ई., बुधवार।

✅️महाकुम्भ दशम स्नान तिथि :

माघ शुक्ल एकादशी -8 फरवरी, 2025 ई., शनिवार।

✅️महाकुम्भ एकादश स्नान तिथि :

माघ शुक्ल त्रयोदशी – 10 फरवरी, 2025, सोमवार ।

✅️महाकुम्भ द्वादश स्नान तिथि :

माघ पूर्णिमा, 12 फरवरी, 2025, बुधवार।

✅️महाकुम्भ त्रयोदश स्नान तिथि :

फाल्गुन कृष्ण एकादशी, 24 फरवरी, 2025, सोमवार।

✅️महाकुम्भ चतुर्दश स्नान पर्व :

महाशिवरात्रि, 26 फरवरी, 2025, बुधवार

महाकुंभ में स्नान का महत्व ?

त्रिवेणी संगम यानी गंगा, यमुना व सरस्वती-तीनों पावन नदियों के संगम पर माघ मास और कुम्भ पर्व पर स्नान, जप-पाठ और दानादि का धर्म शास्त्रों में विशेष महात्म्य वर्णित किया गया है।

विधि पूर्वक माघ स्नान से बढ़कर कोई पवित्र और पाप नाशक पर्व नहीं।

माघ मास में कुम्भ पर्व पर प्रयागराज में व्यक्ति तीन दिन भी नियमपूर्वक स्नान कर लेता है, तो उसे एक सहस्र अश्वमेघ यज्ञों को करने के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है।

महाकुम्भ महापर्व भारत की प्राचीन गौरवमयी वैदिकता भारतवर्ष का सबसे बड़ा प्रतीक है।

इस महापर्व के अवसर पर देश ही नहीं बल्कि विदेश तक से करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

‘कुम्भ’ शब्द का अर्थ ‘घट (घड़ा)’, ‘शरीर’ और ‘ब्रह्माण्ड’ है।

कुम्भ-पर्व के संबंध में वेद-पुराणों में अनेक महत्त्वपूर्ण मंत्र और प्रसंग मिलते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि कुम्भ-महापर्व अत्यन्त प्राचीन, प्रामाणिक और वैदिक धर्म से ओत-प्रोत है।

*’ऋग्वेद’ के दशम मण्डल के अनुसार कुम्भ-पर्व में जाने वाला मनुष्य स्वयं स्नान, दान-होमादि सत्कर्मों के फलस्वरूप अपने पापों को वैसे ही नष्ट करता है, जैसे कुठार वन को काट देता है। जिस प्रकार नदी अपने तटों को काटती हुई प्रवाहित होती है, उसी प्रकार कुम्भ-पर्व मनुष्य के पूर्व कर्मों से प्राप्त हुए मानसिक व शारीरिक पापों को नष्ट करता है।

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