तीर्थाटन,पर्यटन,व आध्यात्म की दृष्टि से अतुलनीय उत्तराखड़ आदि काल से ही परम पूज्यनीय रहा है।यहां की पावन भूमि आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है,अलौकिक महिमाओं को समेटे तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृंखला,कदम कदम पर देवालयों के दर्शन यहां पधारने वाले आगन्तुकों के हृदय को निर्मलता प्रदान करती है,तमाम अद्भूत दर्शनीय स्थलों में से एक आस्था व पावनता का संगम स्थल भक्ति व मुक्ति प्रदान करने वाली माँ चन्द्रबदनी शक्तिपीठ का महत्व सबसे निंराला है।उत्तराखण्ड के जनपद टिहरी गढ़वाल में स्थित माता चन्द्रबदनी शक्तिपीठ का मन्दिर अनेक अलौकिक रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है ।भगवती चन्द्रबदनी शक्तिपीठ का यह दरबार सदियों से भक्तों के मनोरथ को सिद्ध करने वाला दरवार माना गया है,मान्यता है,कि देवी के इस दरवार में श्रद्वापूर्वक की गयी पुकार कभी भी निंष्फल नही जाती है। भक्तों के हृदय में भक्ति का सचांर करने वाली मातेश्वरी चन्द्रबदनी शक्तिपीठ की अपरम्पार महिमां को शब्दों में कदापि नही समेटा जा सकता है।जो जिस भाव से यहां पधारता है,भक्ति का संचार व मोह का हरण करने वाली माता चन्द्रवदनी उसकी समस्त अभिलाषायें पूर्ण करती है
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इस मंदिर की महिमां का वर्णन पुराणों में अनेक स्थानों पर आया है।स्कंद पुराण में चन्द्रकूट पर्वत के प्रसंग में चन्द्रवदनी माता भुवनेश्वरी की सुन्दर लीला का वर्णन आया है।स्वयं भगवान शिव के पुत्र स्कंद ने इस सिद्व पीठ की महिमां का वर्णन करते हुए देवताओं को बताया है।यह स्थान समस्त सिद्धियों का प्रदाता है।इस शक्ति स्थल के दर्शन से जन्म जन्मांतर के पापों का हरण हो जाता है,गंगा के पूर्व भाग में स्थित चन्द्रकूट पर्वत में स्थित इस स्थल को भुवनेश्वरी पीठ के नाम से भी जाना जाता है
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कहा जाता है,कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुण्ड में माता सती के देह त्यागे जाने के बाद व्याकुल भगवान शंकर उनकी चन्द्रमुखी छवि का स्मरण कर विरहातुर होकर विलाप करने लगे शोकाकुल भगवान शिव के शोक सन्तप्त होने पर समस्त त्रिभुवन शोकाकुल हो उठा कैलाश पर्वत पर शिव के शोकाकुल हो उठने से ब्रह्मा आदि देवता भी सन्तप्त हो उठे यक्ष,मुनि,सिद्व,गन्धर्व,किन्नर आदि भी शोक की ज्वालाओं से दहकने लगे, शोक से उबरने के लिए सभी ने परम श्रद्वा के साथ महामाया भगवती चन्द्रवदनी की स्तुति की स्कंद पुराण में इस स्तुति का सुन्दर उल्लेख मिलता है